इस स्थान पर देवी मां के बाएं वक्ष यानी बाएं स्तन का निपात हुआ हुआ था इसीलिए माना जाता है की मां त्रिपुर मालिनी संतान हीन दंपतियों को ममता का वरदान देती है। श्रीमद्देवी भागवत् पुराण ... Read more
इस स्थान पर देवी मां के बाएं वक्ष यानी बाएं स्तन का निपात हुआ हुआ था इसीलिए माना जाता है की मां त्रिपुर मालिनी संतान हीन दंपतियों को ममता का वरदान देती है। श्रीमद्देवी भागवत् पुराण में जलंधर की कथा है। उसके अनुसार भगवान शिव के क्रोध से जालंधर की उत्पति हुई वो भगवान शिव के समान ही सुंदर और बलशाली था लेकिन क्रोध से उत्पन्न होने के कारण वो नकारात्मकता से भरा हुआ था इसलिए वो राक्षस बन गया। साथ ही उसने अपने बल और बुद्धिमत्ता से जालंधर रक्षसो का राजा बन गया और देवताओं के साथ उसने कई युद्ध लड़े। आगे की कहानी सुनिए इसी एपिसोड में। Read more
कामाख्या मंदिर के गर्भ ग्रह में देवी की किसी प्रतिमा की पूजा नहीं होती बल्कि यहां माता सती की योनि की पूजा होती है जिसका सतयुग में भगवान विष्णु द्वारा माता सती को सुदर्शन से विभा ... Read more
कामाख्या मंदिर के गर्भ ग्रह में देवी की किसी प्रतिमा की पूजा नहीं होती बल्कि यहां माता सती की योनि की पूजा होती है जिसका सतयुग में भगवान विष्णु द्वारा माता सती को सुदर्शन से विभाजित करने के बाद गुवाहाटी में निपात हुआ था रहस्मयी बात है योनि पिंड से लगातार बहता झरना .. इसी के साथ जून के महीने में माता ३ दिन के लिए रजवाला होती है.. पुजारी द्वारा मां की योनि के चारों ओर एक साफ सूखा सूती कपड़ा बिछाया जाता है। जिसके बाद 3 दिन के लिए मंदिर के कपाट बंद हो जाते है बाद में जब मंदिर खोला जाता है तो वह वस्त्र गीला लाल रंग का हो जाता है उसी दौरान यहाँ 5 दिनों के लिए अंबुवाची मेला लगता है उन दिनों यहां पर ब्रह्मपुत्र नदी पानी भी लाल रंग का हो जाता है तंत्र साधना के लिए यह विश्व का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। कामाख्या मंदिर के प्रांगण में देवी मां 64 योगिनियों और दस महाविद्याओं के साथ विराजित है साथ ही सुनिए और भी रहस्य से भरी बातें और महिमा और जानिए की इस शक्तिपीठ को महाशक्तिपीठ का दर्जा क्यों दिया गया है। Read more
मान्यता के अनुसार कुरुक्षेत्र के शक्तिपीठ श्री देवीकूप भद्रकाली मंदिर यानि सावित्री शक्तिपीठ में मां सती का दाहिना टखना का निपात हुआ था। किंवदंती है कि महाभारत युद्ध शुरू करने से ... Read more
मान्यता के अनुसार कुरुक्षेत्र के शक्तिपीठ श्री देवीकूप भद्रकाली मंदिर यानि सावित्री शक्तिपीठ में मां सती का दाहिना टखना का निपात हुआ था। किंवदंती है कि महाभारत युद्ध शुरू करने से पहले, भगवान कृष्ण के साथ पांडवों ने जीत हासिल करने की उत्कट आशा के साथ इस पवित्र स्थल पर आशीर्वाद मांगा और प्रार्थना की। अपनी भक्ति के एक संकेत के रूप में, उन्होंने अपने रथों से घोड़ों का दान किया, चांदी, मिट्टी या अन्य सामग्रियों से बने घोड़ों की भी पेशकश करने की एक कालातीत परंपरा की शुरुआत करी। इसके अतिरिक्त, शक्तिपीठ श्री देवीकूप भद्रकाली मंदिर में श्री कृष्ण और बलराम के सिर का ।मुंडन भी हुआ था तभी से यहाँ भक्त अपने शिशुओं का भी शुभ मुंडन समारोह में मुंडन करवाते है। Read more
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर के दक्षिण दिशा में यमुना नदी के तट पर सती के हाथ की उंगली गिरने से भगवती ललिता का प्राकट्य हुआ था। ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में मां गंगा, यमुना औ ... Read more
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर के दक्षिण दिशा में यमुना नदी के तट पर सती के हाथ की उंगली गिरने से भगवती ललिता का प्राकट्य हुआ था। ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में मां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मां ललिता के चरण छूकर ही बहती थी। इसलिए मां को प्रयाग की महारानी भी कहा जाता है। यहां मुख्य रूप से देवी के तीन स्वरूपों की पूजा होती है। मां ललिता देवी, कल्याणी देवी और अलोपी देवी के मंदिरों को शक्तिपीठ माना गया है। देवी की उंगलियां संभवतः तीनो स्थानों पर गिरी इसलिए तीनों में से कौन श्रेष्ठ कौन असली का प्रश्न ही नहीं उठता। तीनो एक दूसरे के आस पास ही स्थित है। Read more
शिव तथा सती के ऐक्य का प्रतीक है। शिव पुराण के अध्याय 38 में भी द्वादश ज्योर्तिलिंग की जो चर्चा की गई है, उसमें बैद्यनाथं चिताभूमौ का उल्लेख है। जो यह स्पष्ट करता है कि यहाँ सती का ... Read more
शिव तथा सती के ऐक्य का प्रतीक है। शिव पुराण के अध्याय 38 में भी द्वादश ज्योर्तिलिंग की जो चर्चा की गई है, उसमें बैद्यनाथं चिताभूमौ का उल्लेख है। जो यह स्पष्ट करता है कि यहाँ सती का हृदय गिरा था। यहाँ की शक्ति 'जयदुर्गा' तथा शिव 'वैद्यनाथ' हैं। यह धाम सभी ज्योतिर्लिंगों से सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग के साथ शक्तिपीठ भी मौजूद है। इसी कारण से इस स्थान को ह्रदय पीठ या हार्द पीठ के नाम से भी जाना जाता है। जहां पर मंदिर स्थित है उस स्थान को देवघर यानी देवताओं का घर कहा गया है। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग कामना लिंग के नाम से भी विख्यात है। मान्यता है कि यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना विल्वपत्र के साथ जलार्पण से ही पूरी हो जाती है। Read more
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। इस गायत्री मंत्र को चार वेदो का सार बताया गया है और गायत्री माता सभी वेदो की माता है पहले गायत्री मंत्र ... Read more
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। इस गायत्री मंत्र को चार वेदो का सार बताया गया है और गायत्री माता सभी वेदो की माता है पहले गायत्री मंत्र की महिमा सिर्फ देवी देवताओं तक सीमित थी लेकिन महर्षि विश्वामित्र ने कठोर तपस्या करके इस मंत्र को प्राप्त किया और सृष्टि कल्याण हेतु आम जन तक पहुंचाया. राजस्थान के पुष्कर शहर में मणिबंध मणिवेदिका या गायत्री पर्वत पर स्थित है गायत्री देवी मणिबंध शक्तिपीठ। यहाँ देवी सती के दोनों मणिबंध या कलाई का निपात हुआ था कुछ लोग ऐसा भी मानते हैं कि यहां देवी मां के दोनों कंगन गिरे थे। शक्तिपीठ की अधिष्ठात्री देवी है देवी गायत्री जो मां सरस्वती का ही स्वरूप है और यहां के भैरव यानी शिव को सर्वानंद के नाम से पूजा जाता है। Read more
बाई भुजा से माता रानी असुर, दैत्य, नकारात्मकता और भक्तों के संकटों को नष्ट कर देती हैं और दाहिनी भुजा से अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं और उनका कल्याण करती हैं। इस एपिसोड में जान ... Read more
बाई भुजा से माता रानी असुर, दैत्य, नकारात्मकता और भक्तों के संकटों को नष्ट कर देती हैं और दाहिनी भुजा से अपने भक्तों को आशीर्वाद देती हैं और उनका कल्याण करती हैं। इस एपिसोड में जानिए पश्चिम बंगाल के केतुग्राम में अजोय नदी के किनारे स्थित माँ बहुला शक्तिपीठ की कहानी. जहां माता सती की बाई भुजा का निपात हुआ था। जिसके दर्शन मात्र से आपके जीवन के सभी नकारात्मकताएं, कष्ट आपके ऊपर किए हुए काले जादू, भूत प्रेत बाधा, तंत्र मंत्र उपचार सब नष्ट हो जाते हैं।यहां की शक्ति है मां बहुला और भैरव यानी शिव को भीरूक कहते हैं। Read more
इस एपिसोड में हम बात करेंगे दक्षायणी देवी मानस शक्तिपीठ की। कैलाश पर्वत के निचले भाग में स्थित मान सरोवर के किनारे स्थित यह शक्तिपीठ है जहां की अधिष्ठात्री देवी हैं माता दक्षायनी, ... Read more
इस एपिसोड में हम बात करेंगे दक्षायणी देवी मानस शक्तिपीठ की। कैलाश पर्वत के निचले भाग में स्थित मान सरोवर के किनारे स्थित यह शक्तिपीठ है जहां की अधिष्ठात्री देवी हैं माता दक्षायनी, जिन्हें कुमुदा के नाम से भी जानते हैं। मान सरोवर यानी मन का सरोवर के किनारे होने से इस जगह नाम मानस शक्तिपीठ हुआ। माता के दाहिने हाथ का निपात इसी स्थान पर हुआ था। वही दाहिना हाथ जिसे वरद हस्त यानी आशीर्वाद का प्रतीक माना जाता है। Read more
इस एपिसोड में हम माता सती के उस शक्तिपीठ की बात करेंगे जो राजा जनक और सुनैना माता की पुत्री सीता माता की जन्मस्थली के साथ-साथ भगवन राम और माता सीता की पहली मुलाकात का साक्षी रहा जो ... Read more
इस एपिसोड में हम माता सती के उस शक्तिपीठ की बात करेंगे जो राजा जनक और सुनैना माता की पुत्री सीता माता की जन्मस्थली के साथ-साथ भगवन राम और माता सीता की पहली मुलाकात का साक्षी रहा जो जगह आज सीता महल के नाम से प्रसिद्ध है। नेपाल की राजधानी काठमांडू से लगभग 225 किलोमीटर और भारतीय सीमा क्षेत्र से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर धनुषा जिले के जनकपुर मंडल में स्थित है जानकी देवी मंदिर और मथिला शक्तिपीठ। बहुत ही कम लोगों को पता है कि यह स्थान देवी मां का शक्ति पीठ भी है। जहाँ माता सती के बाये कंधे का निपात हुआ था। Read more
12वीं शताब्दी में आल्हा-उदल नाम के दो वीरयोद्धा थे जिसमें से योद्धा उदल राजा पृथ्वीराज चौहान से युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए जिसके बाद भाई आल्हा ने बदला लेने के लिए पृथ्वीराज चौ ... Read more
12वीं शताब्दी में आल्हा-उदल नाम के दो वीरयोद्धा थे जिसमें से योद्धा उदल राजा पृथ्वीराज चौहान से युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए जिसके बाद भाई आल्हा ने बदला लेने के लिए पृथ्वीराज चौहान और उनकी सेना पे जम के हमला किया। माना जाता है कि आल्हा ने माँ शारदा की भक्ति कर अपना शीश चढ़ाया था जिससे प्रसन्न हो माँ ने आल्हा को अमरता का वरदान दिया था कई कहानियों के अनुसार आल्हा आज भी अपने घोड़े पर सवार होकर हर सुबह माता के चरणों में फूल चढ़ा पूजा करते है इसकी पुष्टि पुजारी द्वारा सुबह मंदिर के द्वार खोलने पे होती है इस एपिसोड में सुनिए मध्यप्रदेश के सतना जिले से माँ शारदा यानी सरस्वती माँ की महिमा। जिसे स्थानीय लोग माई का हार और माई का घर कहने लगे इसी से इस स्थान का नाम मैहर शक्तिपीठ पड़ा। यहां की शक्ति हैं मां शारदा जो साक्षात मां सरस्वती हैं और भैरव यानी शिव स्वयं काल भैरव रूप में स्थित हैं। Read more