हर साल नवरात्रि में गुह्येश्वरी शक्तिपीठ में मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें भारत, भूटान सहित कई देशों से श्रद्धालु दर्शन करने आते है।यहां नवरात्र के साथ 10 दिवसीय दशैन उत्सव भी ... Read more
हर साल नवरात्रि में गुह्येश्वरी शक्तिपीठ में मेले का आयोजन किया जाता है जिसमें भारत, भूटान सहित कई देशों से श्रद्धालु दर्शन करने आते है।यहां नवरात्र के साथ 10 दिवसीय दशैन उत्सव भी मनाया जाता है। इसमें माता की भव्य सवारी पालकी पर निकलती है. इस जगह पर भगवती सती के शरीर के दोनों घुटनों का निपात हुआ। इसलिए यहां की शक्ति गुह्यश्वरी देवी के नाम से प्रसिद्ध है यहीं पर चंद्रघंटा योगिनी तथा सिद्धेश्वर महादेव का प्रादुर्भाव हुआ यहां शिव शक्ति एकरूप में विराजमान है। गुह्येश्वरी देवी शक्तिपीठ नेपाल के काठमांडू में श्री पशुपतिनाथ मन्दिर से लगभग 1 किमी पूर्व में बागमती नदी के तट के पास स्थित है नेपाल के प्रसिद्ध श्री पशुपतिनाथ मन्दिर के दर्शनो से पहले माता गुह्येश्वरी के दर्शन करना अनिवार्य माना जाता है। इस दिव्य स्थान के बगल में एक तालाब है जिसे भैरव कुंड। यहां एक सुंदर प्रथा है की भक्त अपने हाथ को तालाब के अंदर डालते हैं और जो कुछ भी उन्हें जो कुछ भी मिलता है उसे पवित्र मानकर परमात्मा के आशीर्वाद के रूप में स्वीकार करते हैं। पूरी कहानी सुनिए इस एपिसोड में। Read more
इस एपिसोड में होस्ट निष्ठा सारस्वत आपको लेकर चल रही हैं, उस पावन धरती पर जहां माता सीता माता धरती की गोद में समा गई थी। ये स्थान माता सती का ही शक्तिपीठ है जिसे माता सती के बाए कंध ... Read more
इस एपिसोड में होस्ट निष्ठा सारस्वत आपको लेकर चल रही हैं, उस पावन धरती पर जहां माता सीता माता धरती की गोद में समा गई थी। ये स्थान माता सती का ही शक्तिपीठ है जिसे माता सती के बाए कंधे और वस्त्र का निपात होने से देवी पाटन और देवी सीता के पताल लोक सामने से पातालेश्वरी कहा जाता है। जानिए माता सीता और मां सती के अद्भुद संबंध की अनसुनी पावन कहानी, देवी पाटन पातालेश्वरी शक्तिपीठ की महत्ता, इतिहास, मंदिर विवरण और कैसे पहुंचे कहां रहे विस्तार से। Read more
भारत से बाहर होकर भी अपनी भव्यता इतिहास महत्ता के लिए प्रसिद्ध है इंद्राक्षी मंदिर। देवी आदिशक्ति जो स्वयं प्रकृति है, जो सुंदरता की परिभाषा है, जिनसे सोलह श्रृंगार की कला समस्त स् ... Read more
भारत से बाहर होकर भी अपनी भव्यता इतिहास महत्ता के लिए प्रसिद्ध है इंद्राक्षी मंदिर। देवी आदिशक्ति जो स्वयं प्रकृति है, जो सुंदरता की परिभाषा है, जिनसे सोलह श्रृंगार की कला समस्त स्त्रियों ने सीखी, उन्ही मां आदिशक्ति सती के नुपुर अर्थात घुंघरू श्रीलंका के जाफना में आकर गिरे और इसी स्थान पर इन्द्राक्षी या शंकरी शक्तिपीठ की स्थापना हुई थी। यहां की शक्ति को मां इंद्राक्षी, शंकरी और नागापुष्णी अम्मा के नाम से जाना जाता है तथा शिव या भैरव को रक्ष वंश यानी राक्षसों के ईश्वर राक्षसेश्वर या नायंनार कहा जाता है। इस एपिसोड में सुनिए त्रेतायुग में घटित श्रीराम, सीता और रावण से जुड़ी रोचक कहानी। Read more
अंबिका देवी विराट शक्तिपीठ सतयुग में देवी सती के बाए पैरो की उंगलियों का निपात हुआ था। यहां की शक्ति है मां अंबिका और भगवान शिव यहां भैरव अमृत के रूप में रहते है. इस मंदिर की मान् ... Read more
अंबिका देवी विराट शक्तिपीठ सतयुग में देवी सती के बाए पैरो की उंगलियों का निपात हुआ था। यहां की शक्ति है मां अंबिका और भगवान शिव यहां भैरव अमृत के रूप में रहते है. इस मंदिर की मान्यता है की, महाभारत काल में जुए के खेल में कौरवों ने पांडवों को छल से हरा दिया। इसके चलते उन्हें 12 साल के वनवास और एक साल का अज्ञातवास मिला। तब पांडवो ने विराटनगर में ही अपना अज्ञातवास बिताया था उसी दौरान राजा युधिष्ठिर ने विराटनगर पहुंचकर इस शक्तिपीठ पर अपनी कुलदेवी का मानस पूजन किया था। कहते हैं की अज्ञातवास के समय देवी ने ही उन्हें विराटनगर रहने का आश्रय दिया था. इसके बाद से इसे मानस माता के रूप में भी जाना जाने लगा. पूरी कहानी सुनिए इस एपिसोड में। Read more
इस एपिसोड में हम जानेंगे कि नारायण ने किस जगह पर भस्मासुर का वध किया था और श्रीराम और भ्राता लक्ष्मण ने कैसे विद्या प्राप्त की और ताड़का का वध किया। हम आपको ले जाएंगे बिहार राज्य क ... Read more
इस एपिसोड में हम जानेंगे कि नारायण ने किस जगह पर भस्मासुर का वध किया था और श्रीराम और भ्राता लक्ष्मण ने कैसे विद्या प्राप्त की और ताड़का का वध किया। हम आपको ले जाएंगे बिहार राज्य के रोहतास जिले के शहर सासाराम में, जहां ताराचण्डी शक्तिपीठ स्थित है। यह स्थान अपने प्राचीनतम और चमत्कारी इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। हम आपको मंदिर और शक्तिपीठ की महिमा के बारे में भी बताएंगे। यह सुनिश्चित करेगा कि आप अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए इस पवित्र स्थान का दर्शन करें। Read more
भगवान श्रीकृष्ण ने अपना शरीर प्रभास चंद्रभागा शक्तिपीठ में त्यागा था। यह एक बहुत ही पवित्र और महिमामयी जगह है जहां श्रद्धालुओं को अपने पिछले पापों से मुक्ति मिलती है और उन्हें भगवा ... Read more
भगवान श्रीकृष्ण ने अपना शरीर प्रभास चंद्रभागा शक्तिपीठ में त्यागा था। यह एक बहुत ही पवित्र और महिमामयी जगह है जहां श्रद्धालुओं को अपने पिछले पापों से मुक्ति मिलती है और उन्हें भगवान का आशीर्वाद प्राप्त होता है। मंदिर में मां काली की विग्रह और शिवलिंग के दर्शन होते हैं और इस मंदिर की ओर जाने वाला रास्ता श्री राम मंदिर के प्रवेश द्वार के बाईं ओर से जाता है। यह मंदिर भगवान शिव और मां चंद्रभागा की उपासना करने वालों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। तो चलिए इस एपिसोड में हम चलते है गुजरात के प्रभासपाटन क्षेत्र में स्थित प्रभास चंद्रभागा शक्तिपीठ के में। इस शक्तिपीठ में देवी सती के उदर (पेट) का निपात हुआ था और यहां देवी चंद्रभागा और भगवान भैरव की पूजा होती है। Read more
गुजरात के राजधानी गांधीनगर से 147 किलोमीटर और 3 घंटे की दूरी पर पर्वत की चोटी पर स्थित है अंबाजी शक्तिपीठ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां माता के हृदय के एक भाग का निपात हुआ था। ... Read more
गुजरात के राजधानी गांधीनगर से 147 किलोमीटर और 3 घंटे की दूरी पर पर्वत की चोटी पर स्थित है अंबाजी शक्तिपीठ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां माता के हृदय के एक भाग का निपात हुआ था। इस मंदिर में शक्ति को ‘कुमारी’ के रूप पूजा जाता है और शिव को ‘कालभैरव’ के रूप में पूजा जाता है। गुजरात में माता के तीन शक्तिपीठ स्थापित हैं - अम्बिका, कालिका तथा चंद्र भंगा प्रभास। अंबाजी मंदिर हर सुबह अंबे मां यंत्र के दर्शन के लिए खुलता है। गर्मियों एवं बारिश के दिनों में सुबह 7:00 से 9:00 तक मंदिर के दर्शन होते हैं जबकि सर्दियों में मंदिर में सुबह 7:00 बजे से 8:00 बजे तक ही दर्शन हो पाते हैं Read more
कालमाधव शक्तिपीठ में माता सती के बाया नितंब का निपात हुआ और यहां से सोन नदी प्रकट हुई । यहां की शक्ति है मां काली और भैरव को अतिसांग के नाम से जाना जाता है। यहां से थोड़ी ही दूरी प ... Read more
कालमाधव शक्तिपीठ में माता सती के बाया नितंब का निपात हुआ और यहां से सोन नदी प्रकट हुई । यहां की शक्ति है मां काली और भैरव को अतिसांग के नाम से जाना जाता है। यहां से थोड़ी ही दूरी पर स्थित है सोनदेश शक्तिपीठ जहां माता का दायां नितंब गिरा था। और यहां से ही नर्मदा नदी का उद्गम स्थल है। यहां को शक्ति है मां नर्मदा और भैरव को भद्रसेन के नाम से पुकारा जाता है। नर्मदा नदी का उद्गम सोनदेश शक्तिपीठ के एक कुंड से होता है। नर्मदा नदी में बसने वाले सभी कंकर को शंकर कहा जाता है, और सोन नदी का उद्गम कालमाधव शोणाकक्षी शक्तिपीठ के कुंड में से होता है। इनका उद्गम स्थल देखने वाले लोग आश्चर्य से भर जाते है की एक कुंड से इतनी वृहद नदिया कैसे निकल सकती है? ये पानी आखिर आ कहा से रहा है? जानने के लिए सुनिए पुरे एपिसोड को। Read more
कामाक्षी अर्थात सबसे सुंदर आँखों वाली। जिनकी नेत्रों के दर्शन मात्र से ही भक्तों के भाग्य बदल जाते हैं। कहते है देवी कामाक्षी अम्मा की एक आंख में लक्ष्मी और दूसरी में सरस्वती मां क ... Read more
कामाक्षी अर्थात सबसे सुंदर आँखों वाली। जिनकी नेत्रों के दर्शन मात्र से ही भक्तों के भाग्य बदल जाते हैं। कहते है देवी कामाक्षी अम्मा की एक आंख में लक्ष्मी और दूसरी में सरस्वती मां का वास है। यहां की शक्ति है मां 'देवगर्भा' तथा भैरव यानी शिव को 'रुरु' कहते हैं।यहां पर देवी सती के अंगों के निपात को लेकर तीन विभिन्न मान्यताएं है। कुछ लोगों का मानना है कि यहां देवी देह का कंकाल गिरा था जबकि अन्य मतों के अनुसार यहां देवी देह पर पहना हुआ आभूषण 'उत्तियाना' जो की पेट पर धारण किया जाता है वह गिरा था लेकिन यहां के पुरोहितों का कहना है की ये नाभि पीठ है यहां मां की नाभी का निपात हुआ था। आइये इस एपिसोड में सुनिए कांची कामाक्षी शक्तिपीठ की महिमा। Read more
चित्रकूट की पावन धरती पर ही रामचरितमानस जैसे अमर कृति लिखने वाले गोस्वामी तुलसीदास ने यहां कई वर्ष व्यतीत किए। उन्होंने ही भगवान श्री राम की भक्ति के कारण चित्रकूट को रामगिरी रूप म ... Read more
चित्रकूट की पावन धरती पर ही रामचरितमानस जैसे अमर कृति लिखने वाले गोस्वामी तुलसीदास ने यहां कई वर्ष व्यतीत किए। उन्होंने ही भगवान श्री राम की भक्ति के कारण चित्रकूट को रामगिरी रूप में वर्णित किया है। और इसी स्थान पर तुलसीदास ने हनुमान बाबा की सहायता से भगवान श्री राम के साक्षात दर्शन भी किए। पौराणिक ग्रंथों में विवरण आता है की राम के आगमन से पूर्व ही सतयुग के प्रारम्भ से चित्रकूट एक बहुत सुन्दर देवी पीठ था। इस जगह पर माता सती का दाया वक्ष का निपात हुआ था। यहां की शक्ति है मां 'शिवानी' और भैरव यानी शिव को 'चंद' या "चंदा"के रूप में पूजा जाता है। आख़िर क्या है प्रभु श्री राम और सीता से जुड़ा इस शक्तिपीठ से रहस्य सुनिए इस एपिसोड में। Read more