कामाख्या मंदिर के गर्भ ग्रह में देवी की किसी प्रतिमा की पूजा नहीं होती बल्कि यहां माता सती की योनि की पूजा होती है जिसका सतयुग में भगवान विष्णु द्वारा माता सती को सुदर्शन से विभाजित करने के बाद गुवाहाटी में निपात हुआ था रहस्मयी बात है योनि पिंड से लगातार बहता झरना .. इसी के साथ जून के महीने में माता ३ दिन के लिए रजवाला होती है.. पुजारी द्वारा मां की योनि के चारों ओर एक साफ सूखा सूती कपड़ा बिछाया जाता है। जिसके बाद 3 दिन के लिए मंदिर के कपाट बंद हो जाते है बाद में जब मंदिर खोला जाता है तो वह वस्त्र गीला लाल रंग का हो जाता है उसी दौरान यहाँ 5 दिनों के लिए अंबुवाची मेला लगता है उन दिनों यहां पर ब्रह्मपुत्र नदी पानी भी लाल रंग का हो जाता है तंत्र साधना के लिए यह विश्व का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है। कामाख्या मंदिर के प्रांगण में देवी मां 64 योगिनियों और दस महाविद्याओं के साथ विराजित है साथ ही सुनिए और भी रहस्य से भरी बातें और महिमा और जानिए की इस शक्तिपीठ को महाशक्तिपीठ का दर्जा क्यों दिया गया है।
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