मन का एक ही ढर्रे पर दौड़ते रह जाना, हमें कहीं पहुंचाता भी नहीं है और थका भी देता है। मन जब ढलना नहीं जानता, तब हम ढहने लगते हैं। खुले दिमाग के साथ आए दिन की चुनौतियों. . . . नफे-नुकसान के साथ तालमेल बनाना आसान हो जाता है। सोच को लचीला बनाना क्यों जरूरी है, तेरी मेरी बात में इसी पर बात
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