समझौता यानी मजबूरी का नाम। हममें से ज्यादातर यही सोचते हैं। कंप्रोमाइज करने के लिए हम आसानी से तैयार नहीं होते। मन में गुस्सा और कड़वाहट रहती है। हम बुरा महसूस करते हैं। पर क्या समझौतों के बगैर जिंदगी संभव है? कहीं ऐसा तो नहीं कि खुद के साथ या फिर दूसरों से तालमेल बिठाने की हर जरूरी कोशिश को हम समझौते के चश्मे से देखने लगे हैं। समझौता करना हमेशा बुरा नहीं होता इसी पर आज की तेरी-मेरी बात|
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