कम का मतलब हमेशा मज़बूरी या समझौता नहीं होता। बहुत सारी ज़रूरतें ऐसी हैं, जिन्हें हमने बेकार ही जोड़ा हुआ है। फालतू की ये चीजे़ं हमें उलझाती ही ज़्यादा हैं। कई बार कम होना ही ज़्यादा होना है। छोड़ना ही पाना है। किन ज़रूरतों में करें कमी, तेरी-मेरी बात में इसी पर बात
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