जन्म से हमें दो हाथ मिले हैं। पर हम जितना ख़ुद को ‘इवॉल्व’ करते हैं, सुख-समृद्धि के कई हाथ उठ खड़े होते हैं। हम तन के साथ मन से जुड़ते हैं। भीतर की शक्ति की उंगली थामे हम धीरे-धीरे अपूर्ण से पूर्ण होने लगते हैं। माँ दुर्गा की तरह हमारी शक्ति के भी कई हाथ होते हैं। हमें अपने और हाथों को भी विकसित करना चाहिए। तेरी मेरी बात में इसी पर बात
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