बाहर की दुनिया की सीमाएं हैं, पर भीतर की नहीं। तर्क यानी लॉजिक्स हमें तय दूरी तक ले जाते हैं, पर कल्पनाएं कहीं भी ले जाती हैं। हमारे सपने, हमारी सोच की उंगली पकड़कर ही सच की सांसें ले पाते हैं। हम सब कल्पनाएं करते हैं, कल्पनाओं के घोड़े सबके दौड़ते हैं, पर उन्हें देर तक सब नहीं दौड़ा पाते। सोच के रास्ते में स्पीड ब्रेकर भी तो होते हैं। कल्पनाओं के रास्ते में रुकावटों के किलों को हटाएं, इसी पर तेरी-मेरी बात
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28 Nov 2024
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