जब हमें लगने लगे कि हम एकदम निष्पक्ष, स्वतंत्र और निष्काम हो गए हैं, उसी क्षण हमें ठहर कर अपनी आंतरिक मूल भावनाओं की ओर ध्यान देना चाहिए। क्या ये कम होने लगी हैं? क्या हमने इन पर अधिकार जमा लिया है, या ये अब भी वैसी की वैसी हैं? असल में हमारे अवचेतन में भी ये मूल भावनाएं अपना काम कर रही होती हैं। हेल्थशॉट्स पॉडकास्ट मन की मेधा के आज के इस एपिसोड में लाइफ कोच डॉ. मेधावी जैन कर रहीं हैं जीवन पर इसके प्रभाव के बारे में बातचीत।
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